जिस देवबंद में करीब आधे मतदाता मुसलमान हैं, वहां से सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार क्यों हटाया, जानिए
नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश की एक चर्चित विधानसभा सीट है, देवबंद (Deoband Assembly Seat). यहां करीब 3 लाख मतदाता हैं. इनमें से लगभग आधे मुसलमान. करीब 1.3 लाख के आसपास. यही वजह है कि चुनाव में पार्टियां अक्सर अपना उम्मीदवार चुनते वक्त इस तथ्य को ध्यान में रखती हैं.
इस विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के जरिए उत्तर प्रदेश (UP) की सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही समाजवादी पार्टी (SP) ने भी इसका ख्याल रखा. पहले माविया अली को देवबंद (Deoband) से उम्मीदवार बनाया. लेकिन फिर बदल दिया. अब उसके प्रत्याशी कार्तिकेय राणा हैं, जो जाति से राजपूत और सपा सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र राणा के बेटे हैं.
सवाल हो सकता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो सपा (SP) ने मुस्लिम प्रत्याशी (Muslim Candidate) को बदलने का फैसला किया? इससे वहां किस तरह की चुनावी परिस्थितियां बन रही हैं? न्यूज18हिंदी (News18Hindi) ने इन सवालों की पड़ताल मौके पर जाकर की. इससे जो जवाब सामने आए, वे कुछ इस तरह रहे.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने गड़बड़ा दिए समीकरण
सबसे खास बात तो यह सामने आई कि तेलंगाना के नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ने देवबंद (Deoband) में सपा (SP) के समीकरण गड़बड़ कर दिए हैं. ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) ने यहां से उमैर मसूदी को उम्मीदवार बनाया है. उमैर मसूदी देवबंद के प्रभावशाली मसूदी-मदनी परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता मसूद मदनी बड़े राजनेता रहे हैं.
देवबंद के दारुल-उलूम शिक्षा केंद्र (Darul-Uloom Seminary) के मुख्य धर्मगुरु अरशद मदनी (Arshad Madani) और जमीयत-उलेमा-ए-हिंद (Jmiat Ulema-e-Hind) के महमूद मदनी (Mahmood Madani) से भी उनका रिश्ता है. ये बात अलग है कि मसूदी और मदनी परिवार आपस में अब कोई रिश्ता न रखने का दावा करता है.
लेकिन आम जनता के लिए तो बस इतना ही काफी है कि ये दोनों परिवार असल में एक ही रहे हैं. लिहाजा, इसी आधार पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) का यहां पलड़ा कुछ भारी हो गया है.
इसीलिए सपा की कोशिश अब भाजपा के वोट बांटने की
सपा (SP) ने एआईएमआईएम (AIMIM) के दांव का ध्यान रखते हुए ही संभवत: प्रत्याशी बदला है. ताकि मुस्लिमों के वोट में बंटवारा न हो. इसके बजाय भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वोट बंट जाएं. भाजपा ने यहां से अपने मौजूदा विधायक कुंवर बृजेश सिंह को ही फिर चुनाव मैदान में उतारा है. वे भी राजपूत क्षत्रिय हैं.
हालांकि भाजपा इस बार भी अपनी जीत के लिए पूरी तरह आश्वस्त दिख रही है. इसके दो कारण हैं. पहला- उसे प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के 80 बनाम 20 के नारे पर भरोसा है.
इसमें ‘80’ मतलब एकजुट हिंदू समुदाय. आदित्यनाथ ने देवबंद में आतंक-निरोधी दस्ते (ATS) के कार्यालय की जो आधारशिला रखी, उसे भी इसी विचार का प्रतिबिंब माना जा रहा है. इतना ही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) भी यहां अपने हालिया दौरे में ‘घर-घर, द्वार-द्वार अभियान’ (Door to Door Campaign) के जरिए पार्टी के पक्ष में माहौल बना चुके हैं. इसी आधार पर पार्टी को जीत का भरोसा है.मगर दांव चलेगा किसका आखिर में?
ये मार्के का सवाल है. इसके जवाब में कई पहलू हैं. इनमें से एक बकौल सपा प्रत्याशी कार्तिकेय राणा, ‘एआईएमआईएम को कोई यहां गंभीरता से नहीं लेता. सबको पता है, वह भाजपा की ‘बी’ टीम है.’ वे इसके साथ ही अपनी जीत के प्रति भी पूरा भरोसा जताते हैं. लेकिन यहीं से दूसरा पहलू जुड़ कहानी में जाता है.
दरअसल, सपा (SP) ने तो माविया अली (Mavia Ali) को चुनावी मैदान से हटा लिया है. लेकिन वे खुद नहीं हटे हैं. उन्होंने अपना नामांकन अब तक वापस नहीं लिया है. साथ ही बेटे हैदर अली हो निर्दलीय उम्मीदवार भी बनवा दिया है. यानी अगर उन्हें पार्टी के दबाव में नामांकन वापस लेना भी पड़े तो बेटे के माध्यम से चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति बनाए रखेंगे.
इसके अलावा अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) द्वारा पाकिस्तान के संस्थापक (Founder of Pakistan) मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) की तारीफ का मुद्दा भी यहां सपा के माथे आया हुआ है. हालांकि हाल ही में कांग्रेसी से सपाई हुए इमरान मसूद (Imaran Masood) इस धूल को झाड़ने की कोशिश करते हैं.
वे कहते हैं, ‘लोगों ने सिर्फ आधी बात (अखिलेश की) सुनी और हल्ला मचाना शुरू कर दिया. जिन्ना तो हमारा दुश्मन है. उसने देश के दो टुकड़े किए. जिन्ना की बात दरअसल, जो लोग उछाल रहे हैं, वे ही खुद उसकी विचारधारा के समर्थक हैं.’
और इसमें तीसरा पहलू है, बहुजन समाज पार्टी (BSP), जिसने प्रमुख गुर्जर नेता राजेंद्र चौधरी को मैदान में उतारा है. बसपा यहां भाजपा (BJP) और सपा (SP) की लड़ाई के बीच अपना फायदा देख रही है. इसकी वजह ये है कि देवबंद के हिंदुओं में गुर्जर दूसरा सबसे बड़ा वर्ग (लगभग 30,000) बताया जाता है. करीब 65,000 दलितों का साथ मिलने पर उनका पलड़ा मुस्लिमों (90,000 के आसपास) से भी भारी हो जाता है. और यह चुनाव नतीजा बसपा की तरफ झुका सकता है.