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वो 04 लोग जिन्होंने फेसबुक से जनसैलाब जुटाकर लंका से राजपक्षे फैमिली को उखाड़ा

ये बात सुनने में जरूर विचित्र लग सकती है लेकिन हकीकत ये है कि 09 जुलाई को कोलंबो में प्रेसीडेंट हाउस के पास जुटा अथाह जनसैलाब जुटाने के पीछे असल में 04 युवा चेहरे थे, जिसमें कोई डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट तो कोई नाटककार तो कोई पादरी है. उन्होंने फेसबुक के जरिए श्रीलंका में हर किसी तक पहुंच बनाई और वो जनसैलाब जुटाया, जिसे सारी दुनिया ने देखा.

श्रीलंका में 08 जुलाई को कोलंबो के ज्यादातर इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया था. जगह जगह बैरियर लगा दिए गए थे. धरपकड़ हो रही थी. इन सबके बावजूद दुनियाभर में हर किसी ने ये देखा कि 09 जुलाई को दोपहर तक हजारों-लाखों का जनसैलाब कोलंबों में प्रेसीडेंट हाउस के इर्द-गिर्द उमड़ आया. प्रेसीडेंट राजपक्षे को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा. फिर इस भीड़ ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के घर पर प्रदर्शन किया. सरकारी भवनों पर कब्जा कर लिया.

ये सब इस तरह हुआ कि श्रीलंका में सरकार में बैठे नेता कांप गए. आखिर ये सब हुआ कैसे. क्या आपको अंदाज है कि इस सबके पीछे थे केवल 04 युवा चेहरे, जो पिछले 04-05 महीनों से लगातार मीटिंग कर रहे थे. रणनीति बना रहे थे और फेसबुक से देशभर के एक एक शख्स तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे.

इसमें पहला युवा चेहरा हैं चामिरे देडवगे. जिनके फेसबुक अकाउंट में ढेरों वीडियो और जनता को अपील करने वाले संदेश भरे पड़े हैं. उनकी हर पोस्ट को बड़े पैमाने पर शेयर किया जाता रहा है. वह पेशे से मार्केटिंगमैन हैं. देश की एक बड़ी विज्ञापन कंपनी में मैनेजर हैं. वह फेसबुक में अपने परिचय में लिखते हैं पेशे से मार्केटियर लेकिन च्वाइस से एक्टिविस्ट और मौजूदा हालात में राजनीतिक विश्लेषक. वह उनके साथी मार्च से ही कोलंबो में समुद्र तट के किनारे लंबी लंबी मीटिंग करके ये विचार करते रहे कि क्या किया जाए. अप्रैल से उन्होंने अभियान शुरू किया. 09 अप्रैल को कुछ हजार लोगों ने राजपक्षे के आफिस के बाहर प्रदर्शन किया.

ये हैं अरगालया आंदोलन का दूसरा चेहरा सत्या चारित अमरातुंगे. जिनके फेसबुक अकाउंट में वह जुलूस लेकर निकलते और गो गोटा होम के नारे लगाते नजर आते हैं. उनका अकाउंट भी जनता से अपील करने और वीडियो के जरिए आंदोलन के लिए उन्हें जगाने वाली पोस्ट से भरा हुआ है. वो कोलंबो से 20 किलोमीटर दूर मोरातुआ में रहते हैं. जोशीले और अच्छे संगठनकर्ता हैं. पेशे से सत्या चारित भी मा्र्केटिंग प्रोफेशनल हैं. देशभर के 80 लाख फेसबुक यूजर्स को इस आंदोलन से जोड़ने का काम उन्होंने चामीरा देडवगे ने किया. उन दोनों की पोस्ट पंख लगाकर देश के हर कोने में पहुंचती रहीं.

जिस दिन कोलंबो में भीड़ को जुटाना था, उससे पहले सत्या अपने साथियों के साथ लगातार रणनीति बनाने, लोगों तक फेसबुक के जरिए पहुंचने का काम करते रहे. हालांकि जिस तरह कोलंबो में उस दिन कर्फ्यू लगा, उससे लोगों को ज्यादा नहीं लेकिन 10000 की भीड़ जुटने की उम्मीद जरूर थी. लेकिन सत्या ने एक इंटरव्यू में बाद में कहा कि इस आंदोलन ने दिखा दिया कि बगैर पैसा खर्च किए केवल फेसबुक से कैसे एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता है. (फेसबुक)

ये श्रीलंका में उमड़े जनसैलाब से जुडे़ आंदोलन का तीसरा युवा चेहरा हैं. नाम है रूवांती डि चिकेरा. वह नाटककार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका काम ये था कि वो किस तरह वालिंटियर के जरिए देशभर और खासकर कोलंबो और आसपास के इलाकों में लोगों के घरों तक पहुंचे और डोर टू डोर संपर्क करें. उन्होंने ये काम बखूबी किया. चूंकि वह नाटककार हैं तो लोगों से जुडऩे के लिए अपनी इस विधा का खूब इस्तेमाल किया. उनके डायलाग्स को खूब पसंद किया गया. कहना नहीं होगा कि वो भी पिछले कुछ महीनों से फेसबुक पर जबरदस्त तरीके से सक्रिय हैं. (फेसबुक)

ये अरगालया आंदोलन के पीछे रहे मुख्य चेहरों का चौथा नाम हैं. उनका पूरा नाम अमिला जीवंत पेइरिस है. पेशे से कैथोलिक पादरी हैं. लेकिन इस बार उन्होंने देश में लोगों को जगाने के काम में हिस्सा बंटाया. उन्होंने इस आंदोलन के लिए जहां तमाम धार्मिक संगठनों को साथ लिया. वहीं अपने साथियों के साथ सीधे विपक्षी दलों और स्टूडेंट फेडरेशंस से संपर्क साधा. जीवंत भी फेसबुक पर खूब सक्रिय रहते हैं. वहां उनके वीडियो और अपील करने वाली पोस्ट मिल जाएगी.

पादरी जीवंत पेइरिस लोगों के पास भी गए. छोटी छोटी सभाओं को संबोधित किया. लोगों को जगाने का काम किया. हालांकि इन चारों युवाओं ने 09 अंक को अपने आंदोलन में खास जगह दी. 09 अप्रैल को अगर पहली बार प्रदर्शन किया गया तो 09 जून अगले बडे़ प्रदर्शन के जरिए इतना दबाव बनाया गया कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा दे दें. इसके बाद फिर भारी भीड़ जुटाकर 09 जून को जब प्रदर्शन किया गया तो इस बार बासिल राजपक्षे को इस्तीफा देना पडा़. 09 जुलाई का प्रदर्शन तो अभूतपूर्व था. लोगों को अब भी समझ नहीं आ रहा कि लंका में इतनी भारी भीड़ आखिर कैसे जुट गई. लोग कैसे राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे.

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